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मेरा मोहल्ला

मेरी कवितायें
मेरी कवितायें
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जब मैं छोटी सी थी,
मेरा मोहल्ला कुछ अलग सा था।
सड़कों पर इतनी भीड़ न थी,
तार के इतने जाल न थे,
यहाँ के घर दो मंजिलों के न थे,
जब मैं छोटी सी थी,
मेरा मोहल्ला कुछ अलग सा था।
आज जितने जादा है,
तब यहाँ इतने बच्चे न थे।
कई नए लोग आए है,
जो यहाँ रहते ना थे,
जब मैं छोटी सी थी,
मेरा मोहल्ला कुछ अलग सा था।
बदलाव तो रीत है
कुछ तब था, अब न है
और अब है, तब न था
जब मैं छोटी सी थी,
मेरा मोहल्ला कुछ अलग सा था।
लेकिन सामने वाला पीपल
कल भी था, आज भी है।
जैसा था, वैसा ही है।

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