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बारिश

मेरी कवितायें
मेरी कवितायें
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इस सावन मे पहली बार,
घटाओं ने की ऐसी बौछार,

धरती का था प्यासा मन,
हुआ बारिश से तृप्त तन,

सूखे की थी मार पड़ी,
शुक्ल पक्ष ने दी फूलझड़ी,

होने को थी हाय हाय,
अब मिली कुछ सांस है,

धरती होने को थी बंजर,
तभी बदलो की पड़ी नजर,

हम है बैठे आँख बंद किए,
इस धरती से है केवल लिए,

देना शायद हम भूल गए,
स्वार्थी सारे हम हो गए,

हम खुद खोद रहे खाई,
शायद हमारी अंत घड़ी आयी,

आज अगर न सुधरे हम,
कल समझो खत्म हुए हम।

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