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दर्द मे हंसी खोज रही थी,

मेरी कवितायें
मेरी कवितायें
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दर्द मे हंसी खोज रही थी,
पत्थर मे जिंदगी खोज रही थी,
पता नहीं था
क्या कर रही हूँ,
मैं मिट्टी मे खुशी खोज रही थी।
पानी की प्यास थी,
पर कुआं सूखा था,
रेगिस्तान मे नदी खोज रही थी,
कांटो से जख्मी
फूल से भी चोटिल हुई,
सूखे मे नमी खोज रही थी,
आंसुओं ने साथ न दिया आंखो का
और बाहर अ गयीं
दया के गरीबो मे धनी खोज रही थी।

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