मेरी कवितायें
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मै तो काली घटा हूँ,
उड़ती उड़ती आयी हूँ,
हवा के संग आई हूँ,
तेरे शहर मे आई हूँ,
बरसने को आई हूँ।
आकाश बना था राह मेरी,
और पंक्षी बने थे राही,
कितनी जगहे पार की,
कितनी चली हूँ दूरी,
हवा की ऊंगली पकड़ते,
कभी बिखरते कभी बरसते,
बस यूं ही चलते-चलते,
शहर दर शहर पर उड़ते,
देखे मैंने कई नजारे,
देखे मैंने कई बेचारे,
देखे है मैंने कई प्यासे,
सबकी प्यास बुझाने,
उड़ती उड़ती आयी हूँ,
काली घटा बन के आई हूँ।
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