मेरी कवितायें
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कभी मिल जाती है रेखाएँ,
कभी मिट जाती है रेखाएँ।
किस्मत तो हम खुद बनाते है,
पर जिम्मेदार हो जाती है रेखाएँ।
कोई दिया उसे क्या रोशनी देगा,
जिसे बुझा जाती है रेखाएँ।
कुछ दिन तो साथ देती है,
फिर मुंह फेर जाती है रेखाएँ।
इनसे खुशियों की क्या उम्मीद करूँ,
कभी हँसा के फिर रुला जाती है रेखाएँ।
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